शम्बूक (Shambook)
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Item type | Current library | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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Hindi | Stack | H891.431 JAG/S (Browse shelf (Opens below)) | Available | 59990 |
जगदीश गुप्त ने शबरी के जूठे बेरों का प्रसंग शायद इस सोच के साथ लिखा कि इससे राम को दलित चेतना से जोड़कर दलित वर्ग का मित्र बनाया जा सकता है। पर, यह किसी भी द्विज को दलित चेतना से जोड़कर दलित मित्र बनाने का बहुत ही भद्दा तरीका है। चुनावों के दौरान सवर्ण नेता दलितों के घर खाना खाने के नाटक अक्सर करते हैं, पर जूठन उनमें भी कोई नहीं खाता। जगदीश गुप्त के खंड काव्य ‘शंबूक’ का पुनर्पाठ कर रहे हैं कंवल भारती
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