TY - BOOK AU - उषा प्रियम्वदा (Usha Priyamvada) TI - सम्पूर्ण कहानियां (Sampurna kahaniyan) U1 - H 891.433 PY - 2006/// CY - New Delhi PB - Rajkamal KW - Hindi stories N2 - उषा प्रियम्वदा की कहानियाँ जीवन के सहज विडम्बनाबोध की कहानियाँ हैं। घने कुहासे की तरह त्रास जब पाठक को अपने आगोश में लेता है तो सुध-बुध खोता पाठक खुद को छोड़ देता है, उसकी धीमी लय पर डूबने-उतराने को। और, जब कहानी समाप्त होती है तो पाठक खुद को एक सन्नाटे में पाता है—जहाँ दुनिया-जहान की तल्ख सच्चाइयाँ उसे कुरेद रही होती हैं; वह प्रश्नाकुल व बेचैन हो उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है—यह दुनिया ऐसी क्यों है! यह सन्नाटा है जो बोलता है और डोलता भी है और अपने साथ डुलाता भी है पाठक को। फिर वह एक संशयात्मा की तरह जीवन स्थितियों को मुड़-मुडक़र देखने को बाध्य हो जाता है। ऐसे समय में जब रचना के लिए भी विमर्श के कई खाने बना दिए गए हैं, उषा प्रियम्वदा की कहानियाँ जीवन को उसकी समग्रता में लेती हैं। इन कहानियों की त्रासदी को स्त्री-पुरुष के खानों में नहीं बाँटा जा सकता है। ये मनुष्यता की त्रासदी को प्रतिबिम्बित करती कहानियाँ हैं। रघुवीर सहाय ने कभी कहा था—जब मैं कविता पढक़र उठूँ तो सन्नाटा छा जाए। उषा जी की कहानियों की बाबत भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है। ER -