श्रींगला की कड़ियाँ (Sringhala ki kadiyam)
Material type: TextPublication details: Allehabad Lokbharati prakashan 2001Description: 151 pSubject(s): women in India - problemsDDC classification: 305.40954 Summary: शृंखला की कड़ियाँ महादेवी वर्मा के समस्या मूलक निबंधों का संग्रह है। स्त्री-विमर्श इनमें प्रमुख हैं। डॉ॰ हृदय नारायण उपाध्याय के शब्दों में, "आज स्त्री-विमर्श की चर्चा हर ओर सुनाई पड़ रही है। महादेवी ने इसके लिए पृष्ठभूमि बहुत पहले तैयार कर दी थी। सन् १९४२ में प्रकाशित उनकी कृति शृंखला की कड़ियाँ सही अर्थों में स्त्री-विमर्श की प्रस्तावना है, जिसमें तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों में नारी की दशा, दिशा एवं संघर्षों पर महादेवी ने अपनी लेखनी चलायी है।"[1] इसमें ऐसे निबंध संकलिक किये गये हैं जिनमें भारतीय नारी की विषम परिस्थिति को अनेक दृष्टि-बिन्दुओं से देखने का प्रयास किया गया है।[2] युद्ध और नारी नामक लेख में उन्होंने युद्ध स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान पर गंभीर, वैश्विक और मौलिक चिंतन व्यक्त किया है। इसी प्रकार नारीत्व और अभिशाप में वे पौराणिक प्रसंगों का विवरण देते हुए आधुनिक नारी के शक्तिहीन होने के कारणों की विवेचना करती हैं अंग्रेज़ी अनुवाद का मुखपृष्ठ पुस्तक से कुछ पंक्तियाँ- ‘‘भारतीय नारी जिस दिन अपने सम्पूर्ण प्राण-आवेग से जाग सके, उस दिन उसकी गति रोकना किसी के लिए सम्भव नहीं। उसके अधिकारों के सम्बन्ध में यह सत्य है कि वे भिक्षावृत्ति से न मिले हैं, न मिलेंगे, क्योंकि उनकी स्थिति आदान-प्रदान योग्य वस्तुओं से भिन्न है। समाज में व्यक्ति का सहयोग और विकास की दिशा में उसका उपयोग ही उसके अधिकार निश्चित करता रहता है। किन्तु अधिकार के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए। सामान्यतः भारतीय नारी में इसी विशेषता का अभाव मिलेगा। कहीं उसमें साधारण दयनीयता और कहीं असाधारण विद्रोह है, परंतु संतुलन से उसका जीवन परिचित नहीं।..Item type | Current library | Collection | Call number | Status | Date due | Barcode |
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BK | Hindi | Stack | 305.40954 MAH/S (Browse shelf (Opens below)) | Available | 59941 |
शृंखला की कड़ियाँ महादेवी वर्मा के समस्या मूलक निबंधों का संग्रह है। स्त्री-विमर्श इनमें प्रमुख हैं। डॉ॰ हृदय नारायण उपाध्याय के शब्दों में, "आज स्त्री-विमर्श की चर्चा हर ओर सुनाई पड़ रही है। महादेवी ने इसके लिए पृष्ठभूमि बहुत पहले तैयार कर दी थी। सन् १९४२ में प्रकाशित उनकी कृति शृंखला की कड़ियाँ सही अर्थों में स्त्री-विमर्श की प्रस्तावना है, जिसमें तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों में नारी की दशा, दिशा एवं संघर्षों पर महादेवी ने अपनी लेखनी चलायी है।"[1] इसमें ऐसे निबंध संकलिक किये गये हैं जिनमें भारतीय नारी की विषम परिस्थिति को अनेक दृष्टि-बिन्दुओं से देखने का प्रयास किया गया है।[2] युद्ध और नारी नामक लेख में उन्होंने युद्ध स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान पर गंभीर, वैश्विक और मौलिक चिंतन व्यक्त किया है। इसी प्रकार नारीत्व और अभिशाप में वे पौराणिक प्रसंगों का विवरण देते हुए आधुनिक नारी के शक्तिहीन होने के कारणों की विवेचना करती हैं
अंग्रेज़ी अनुवाद का मुखपृष्ठ
पुस्तक से कुछ पंक्तियाँ- ‘‘भारतीय नारी जिस दिन अपने सम्पूर्ण प्राण-आवेग से जाग सके, उस दिन उसकी गति रोकना किसी के लिए सम्भव नहीं। उसके अधिकारों के सम्बन्ध में यह सत्य है कि वे भिक्षावृत्ति से न मिले हैं, न मिलेंगे, क्योंकि उनकी स्थिति आदान-प्रदान योग्य वस्तुओं से भिन्न है। समाज में व्यक्ति का सहयोग और विकास की दिशा में उसका उपयोग ही उसके अधिकार निश्चित करता रहता है। किन्तु अधिकार के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए। सामान्यतः भारतीय नारी में इसी विशेषता का अभाव मिलेगा। कहीं उसमें साधारण दयनीयता और कहीं असाधारण विद्रोह है, परंतु संतुलन से उसका जीवन परिचित नहीं।..
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