Vijay Tendulkar (विजय तेंदुलकर)

खामोश! अदालत जारी है ( Khamosh! adalat jari hai) - 3 - New Delhi Rajakamal prakashan 2016 - 112p

इस नाटक में भारतीय मध्यवर्गीय नैतिकता के छ्ल को बेनकाब किया गया है। मूल मराठी में लिखे इस नाटक का मंचन लगभग सभी महत्त्वपूर्ण भाषाओं में हुआ है। हिन्दी रंगमंच पर भी यह नाटक काफ़ी लोकप्रिय रहा है। ‘खामोश…’ तेंदुलकर ने मूल मराठी में ‘शांतता ! कोर्ट चालू आहे’ के नाम से 1968 में लिखा था जिसे वर्ष के सर्वश्रेष्ठ नाटक के रूप में ‘कमला देवी चट्टोपाध्याय’ पुरस्कार भी मिला था। हिन्दी में इसका अनुवाद कमलाकर सोनटके ने किया था। तेंदुलकर ने इस नाटक के बारे में लिखा था कि “नाटक कैसे ना लिखा जाये, इसका यदि कोई फ़ार्मूला होता तो उसी आधार पर तथा उसी तरह की परिस्थितियों के बीच यह नाटक लिखा गया।” जबकि अलकाज़ी ने नाटक की बेतरतीबी के पीछे छिपी लेखक की पैनी दृष्टि को पहचानते हुए कहा है- “जो कुछ वे देखते और सुनते हैं, उसे ऊपरी तौर पर लापरवाही और सरसरे ढंग से पुनर्नियोजित कर देते हैं, और फ़िर कुछ भी अपनी जगह से बाहर नहीं होता। प्रत्येक सूक्ष्म अर्थ-छाया में ज़हर का सा डंक है।

यह नाटक के भीतर नाटक है। असंख्य मंचनों, चर्चाओं और फिल्मांकनों के चलते अधिकांश लोग इस नाटक से परिचित हैं। नाटक के भीतर चलते इस नाटक की मुख्य पात्र लीला बेनारे की जीवन-कथा जैसे-जैसे खुलती है हमें हमारे आसपास के समाज, उसकी सफेद सतह के नीचे सक्रिय स्याह मर्दाना यौन-कुंठाओं और स्त्री के दमन की कई तहें उजागर होती जाती हैं। नाटक का सर्वाधिक आकर्षक पहलू इसका फॉर्म माना गया है। एक अदालत के दृश्य में मानव-नियति की विडम्बनाओं के उद्घाटन को जिस प्रकार नाटककार ने साधा है, वह अद्भुत है। यही कारण है कि रंगकर्मी हों, नाट्यालोचक हों या दर्शक – हर किसी के लिए यह नाटक भारतीय रंगमंच के इतिहास में मील का एक पत्थर है।

9788126721221


Hindi drama

H891.432 / VIJ/K

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